रामायण- चौदह वर्ष का वनवास:
‘राम को वनवास हो चुका है’, यह ख़बर अयोध्या में आग सी फैल चुकी थी। महल के मुख्य द्वार पर अयोध्या वाशीयों की भीड़ उमड़ पड़ी थी। राम के द्वार पर आते ही लोगों ने उनका रास्ता रोक लिया। राम का राज तिलक नहीं हुआ था परंतु अयोध्या उन्हें अपना राजा मान चुका था। स्त्री हो या पुरुष सभी बोखलाए हुए थे। उनके रोने की आवाज़ से अयोध्या गूँज उठा था। राम के समझाने के बाद उन्होंने राम को वनवास जाने के लिए मार्ग तो दे दिया था। किंतु वो सभी अपने राजा के साथ वनवास जाना चाहते थे।
अयोध्या की सीमा समाप्त हो चुकी थी। वह सभी राम के साथ नदी तट तक पहुँच चुके थे।राम ने कई बार उनसे लौट जाने का आग्रह किया परंतु वे लोग उनका कहा सुन नहीं रहे थे। तब राम ने उन्हें आदेश दिया। वह राम के आदेश का उलंघन नहीं कर सकते थे। राम के नदी पार करते ही वो भी अयोध्या को लौट गए।
वनवास के बाद राम का अयोध्या में आगमन:
वनवास पूरा हो चुका था। राम, सीता और लक्ष्मण के साथ पुष्पक विमान में बैठ अयोध्या की सीमा तक पहुँच चुके थे। सीमा पर पहुँचते ही उन्हें कुछ लोगों का एक समूह दिखाई दिया। जो झोपड़ियाँ बना वँहा रह रहा था। राम ने पुष्पक विमान को सीमा पर उतारने का आदेश दिया। विमान के उतरते ही राम उनके पास गए और पूछा “आप सभी किस नगरी के हो और अयोध्या की सीमा में क्या कर रहे हो?”
उन्होंने कहा “हम अयोध्या वाशी है और चौदह वर्षों से यँहा आप के लौटने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।”
राम यह सुनते ही क्रोधित हो गए और उन्होंने उन लोगों से कहा “तुम लोगों ने मेरे आदेश का पालन नहीं किया। क्या तुम्हारे लिए मेरे आदेश का कोई मूल्य नहीं।”
उन लोगों ने हाँथ जोड़ते हुए कहा “हमने आपके ही आदेश का पालन किया है।”
राम “परंतु मेरा आदेश तो अयोध्या लौट जाने का था फिर तुम लोगों ने चौदह वर्षों तक यँहा मेरी प्रतीक्षा क्यों की?”
उन्होंने कहा “ सभी स्त्री और पुरुष अयोध्या वापस लौट जाएँ यह आपका आदेश था। किंतु हम तो किन्नर है। आपने हमने वापस लौटने के लिए कहा ही नहीं था । इसलिए हम इसी स्थान पर रुक कर आपके लौट आने की प्रतीक्षा कर रहे थे।”
उनकी बात सुन राम को दुःख हुआ। उन्होंने ने अपनी ग़लती स्वीकारी और उन सभी किन्नरों को आशीर्वाद दिया। उन सभी किन्नरों ने राम के साथ अयोध्या में प्रवेश किया था।
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